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नारी हुई शोभायमान जगत में

Saturday, 4 October 2014


नारी हुई शोभायमान जगत में
जैसे लक्ष्मी विराजे जलज में
हरियाली दी तिनके को उसने



नयनों के नीचे लगाया काजल
उसके नीचे नयनों का जल
रखकर सींचा माँ तुलसी को


हृदयवान है वो भागेश्वरी
प्रकृति का तोहफा वह सुंदरी
हरे रंग को लाल रचाती
सहमी सी अब लगे ये परी
निश्छल निर्जल व्रत है करती
अनजाना नहीं किसी को कहती
कपटी आँखों के शीशे में
माँ दुर्गा का बिम्ब दिखती
बच्चों को वो फिर दुलराती


मँझदार में मांझी बन जाती
अंधियारे में वो ज्योति जलाकर
साक्षरता की रौशनी देती। 

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