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Stay Cool

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शर्मीली

Saturday 11 October 2014



वह क्यों यूँ शर्मा जाती है
क्यों इठलाती, इतराती है
पल भर में साया-सा दिखता
 छुपती है और मुस्काती है।

वह क्यों पास नहीं आती है
लाज से, देखो - बलखाती है
सुंदर युवती का मन है कि
नटखट नयन मिला जाती है।

पलकों के नीचे क्यों रंग है
गाल शर्म से लाल हो रहे
आहट सुनकर भागी जाती
केशों को लहरा जाती है।

उलझे-सुलझे बादल-से क्यों,
बाल हैं उसके घने-घने
पतली-पतली उँगलियों से
जल छिड़काकर उड़ जाती है।

धीरे से क्यों मुस्काती है
पलकें नीची किए शरम
गर्दन अपनी हिलाएगी फिर
चाल चलेगी बड़ी नरम।

चुपके से फिर भागेगी वो
दूर कहीं क्यों छिपती है
समझ नहीं पाई मैं अब तक
भाई से क्यों वो डरती है !!!

इश्क़ की वजह मिली...

Monday 6 October 2014



नया समां है, इश्क़ नया है
आहिस्ते चलने की वजह मिली
कैसे सुनाऊँ मैं ये दास्ताँ
खामोशियों में पनाह मिली

जिस रास्ते पर तू मिला
साथ में फिर तू चला
उस राह पर बार-बार
चलने की वजह मिली


हर जीत जो मिली है उसमें
पल-पल तेरा प्यार समाया
इसी इश्क़ के कारण ही तो
दुआओं को मेरी, सफलता मिली

ठहरा तो हर एक पल था
जब तूने यूँ देखा था
ओट में छिपकर चुपके से
देखने की वजह मिली




महसूस करने लगी तुझे
हर लम्हे, हर ख्वाहिश में
तेरे जान लुटाने से
खूबसूरत लगने की वजह मिली

सोचती हूँ कई बार
आँखों से कहूँ, या ज़ुबाँ पर रखूँ
नज़रें नहीं उठ पाती हैं
मुँह की कलम, खाली मिली

हैं सभी परेशान मुझसे
मेरी आदतें हैं बदलीं
लोक-लाज और मर्यादा
की बातें दुश्मन ज़माने से मिलीं

फिर भी मुझको दुःख नहीं
तुझे याद करके है सुकून
तेरी बाहों में ही मुझको
सबसे प्यारी जगह मिली


क्या पता, तुझे चाहने की
सज़ा मिले या प्रशंसा
इन सब को दूसरी दुनिया में
भेज कर मुझे शान्ति मिली

तुझे चाहने का जी करता है
इधर-उधर जाऊँ तो भी
दिल बस यही सोचता है
कि रहने के लिए अब जगह मिली

तेरे साथ ही चलना है मुझको
तेरे साथ ही झड़ना है
तेरे पास में आने से
साँसों को जैसे राहत मिली।


खुद को मैंने सबका बताया...


मेरे आस-पास कुछ लोग रहते हैं
रहते हैं कई, पर कुछ ये कहते हैं
किसी को भी बना सकती हो दोस्त
किसी से भी कर सकती हो बातें
मन है साफ़ तुम्हारा जिसमें
हिम्मत करती हैं, दया-प्रेम की बातें

कुछ लोग मुझसे यह भी कहते हैं
दोस्त तुम्हारे हाथ में नहीं रहते हैं
यदि किसी ने तुम्हें धोखा दिया
तो उस दिन तुम्हें बड़ा मज़ा आएगा
जब कोई बड़ा , उन्हें मज़ा चखाएगा
और तुम्हारी हिम्मत के पेंच कसवाएगा

कुछ यह भी कहते कि जब तुम
उछलती-कूदती हो, अच्छी लगती हो
मुंह चिढ़ाकर, नज़र बचाकर, भागती हो
शैतानी करती हो, बच्ची लगती हो
जब बात मनवाने की ठान लेती हो
तभी उम्र की कच्ची लगती हो

पर कुछ दोस्त यह भी कह गए
शांत स्वभाव व सरल मिजाज़ की
यह है मूरत शालीन स्वभाव की
समझदार हो, आज्ञाकारी
करती हो बातें - सही अंदाज़ की
शर्मीली हो पर तेज़ दिमाग की

लोग यह नहीं समझ पाते हैं
कि समय के अनुसार बदलाव, स्वभाव में आते हैं
मैं तो बिलखते सुख में खुश होकर
रोते हुए भी चुभते आंसू पी सकती हूँ

मेरे व्यवहार से वह भी चुप है
जो मुझे तंग करने के बाद सम्भल गया

चुप रहकर ही आदर्शों की
सलाह को अपना मार्ग बनाया
सभ्य समाज में जीना सीखकर
हर इंसान को दोस्त बनाया
चाहे नर्मी हो या गर्मी
खुद को मैंने सबका बताया।

करी है दुआ !


हाथ जोड़कर
शीश झुकाकर
करी है दुआ

तेरे लिए ही
हर पल जीतने की
करी है दुआ

हर दम जिए तू
चाहे जो तू ,
मिले तुझे
करी है दुआ

तू कुछ ख़ास है
तू मेरे पास है
करी है दुआ

जो तूने कहा,
जो चाहा,
उसे पूरा करने की
करी है दुआ

बस तू आए
हर दिल में छाए
करी है दुआ



तुझमें ही मैं हूँ
मुझमें रहे तू
करी है दुआ
   
 

 
भूलना नहीं है तुझे
मेरे लिए है तू
करी है दुआ

तेरे लिए ही उसने
मुझको भेजा, जब
करी है दुआ।

किसे बुलाएं ?

जब होगा सुनसान अँधेरा
जमा हुआ भूतों का डेरा
तो हम भी भूत बन जाएँ
रौशनी करके किसको जगाएँ?

सब तो ठहरे हैं ये कायर
बुलंद आवाज़ कहाँ से लाएँ?
चाहते तो हम भी हैं पर
कमान चढ़ाने किसको बुलाएँ?

देखते हैं हम रोज़ ख़बरों में
घोटाले लिखे हैं, जहां मर्ज़ी
अखबार का पहला पेज
बिकने के लिए बाज़ार बुलाए

हर जगह मिलता है कोहरा
किसी ऊंची इमारत की आखिरी मंज़िल
से नीचे झाँकने पर
लालच तेरा  इमान बुलाये

जमे हुए हैं सालों से
लोगों के पैर ढकोसलों में
गिरने पर, उठने की बजाय
इंसान गिर कर अकड़ दिखाए

पापी पेट के लिए तिजोरी
सफ़ल होने की रकम है जोड़ी !
कर्म-धर्म का मार्ग त्यागकर
गर्व से अपनी पहचान बताए।

क्या पता, फिर क्या होगा !


कंचों के दर्पण में देख

एक रोज़

व्यंग्य किया किसी निरक्षर ने

हिल जाएगी दुनिया

यदि धरा इन पर

फिसल गई तो

तेज़ भागेगी धरती

अरे पढ़ना कम पड़ेगा

 

लेकिन

सार्थकता तो उसने देखी

महसूस करी

फिर करी बयाँ 

 

यदि ख़त्म हो गई

चमकती-दमकती हरियाली

तो हिल सकती है दुनिया

नही रहेंगे पेड़ और पौधे

तो बचेगा दलदल

मज़बूत नहीं बचेगी माटी

तो फिसल सकती है धरती

 

साँसों की गिरावट से

प्रदूषण की मिलावट से

जनता सारी भूखी-प्यासी

अतृप्त सी धरती

 

भटकेगी कुछ खोजने के लिए

 

भागेगी बहुत तेज़

और जिन्होंने हरियाली उखाड़ी है

लोग दौड़ेंगे

उन्हें उखाड़ने के लिए

समय करेंगे तब भी नष्ट

और

पढ़ना कम पड़ेगा

 

क्यूँकि सोचने का भी वक़्त नहीं होगा

न कोई मंज़िल

न कोई ठिकाना

 

बस धंस जायेंगे

इन्ही पेड़ों के साथ

क्या पता

फर क्या होगा।


जीने दे

Sunday 5 October 2014


जीने की तमन्ना है
ख्वाब सजा हुआ है यहाँ
आ ज़रा करीब से
खुशियों का सागर है जहाँ

जीने दे, जीने दे
इशारों से
दिशाओं में
घूमले तू जी भर के
जीने दे, जीने दे
हवाओं में
पनाहों में
उड़ ले तू जी भर के

ऐसा जो आज मोड़ आया है
ज़िंदगी में
इसपे चलने का ले मज़ा
खुदा की बंदगी में

खुदा की बंदगी
इशारों में आज
छिपे-छिपे से हैं सारे शिकवे

खोल के आज
देख आँखों से
छलके मन की हसरतें

जीने दे, जीने दे
इशारों से
दिशाओं में
घूमले तू जी भर के
जीने दे, जीने दे
हवाओं में
पनाहों में
उड़ ले तू जी भर के...

सैनिक

Saturday 4 October 2014




किसके हाथों मज़बूर होकर
फैसला लिया थककर
चूर - चूर होकर

हालात ने करवट ऐसी बदली
समंदर का ख्वाब छोड़ो यारों
सरहद भी हुई पार

इरादे नेक थे
मज़बूत थे हम भी
बुलंदियों को हासिल किया

पर

कुछ मज़बूर थे हम भी

क्यों कुछ इस तरह
ज़िंदगी हमसे गुमशुदा हुई

रेत में धूप से
तपन हुई पर चुभी नहीं
कि पैर इतने नर्म नहीं

तो फिर उस मज़बूरी में
ऐसा क्या था
कि ले लिया हम से सब कुछ
और किनारा भी नहीं मिला
चैन से सांस लेने को

था तड़पन से उदास जो चेहरा
वह भी झुलस गया

उस गर्मी का शिकार
दर्द भी बन गया
अश्रु नहीं निकल पाये
वे भी तो सूख गए

ऐसी भी क्या मज़बूरी थी
इतनी भी क्या दूरी थी !

चले तो थे फौलादी बन कर
सीमाएँ तोड़ीं कट्टर बनकर
सब त्यागा फिर कैदी बनकर

तब भागा सैनिक
और लज्जा हुई
मन के अंदर !

जागृत नहीं कर पाया खुद को
दिया वहीँ पर सब कुछ त्याग
प्राणो का बलिदान नहीं वह
डर के मर जाना कहलाया।

अब तो हुआ है
कोई सवेरा
लगता है मन होगा हल्का
जागा सैनिक फिर से मन का
छोड़ दिया मरने का धंधा।

अब तो उठो !
! जागो यारों !
होगा वह जो हम चाहेंगे
बुलंद आवाज़ उठाओ प्यारों
अन्याय का सिर हम काटेंगे।