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कविता का अर्थ

Saturday, 4 October 2014

कविता में से निकलती है कविता
क्या नदियों की भांति ?
व्याकुल है पर शीतल है
कि बानी रहे सभ्यताओं की शांति

कहती-सुनती, देखती रहती
भावों और अक्षरों का संयोग
कहीं पर बनी और बह चली
सरिता बन कर गली-गली

तन-मन से समझो जनता
टूटे, टूटे हुए मुल्कों का रिश्ता

दिल के टुकड़ों से बनी होगी
करती होगी कोशिश
टूटे दिल, हो तेरा या किसी का

करती रही बयाँ, हर पल को
खादी से दादी तक
हाथी पर बाराती तक

कालों का जुड़ता हुआ है भेद
है संगमरमर सफ़ेद
रुई का है पहाड़
है तलवार संग ढाल
विश्वयुद्ध का है संकेत
है नारंगी, सफ़ेद, हरी रेत
खुद ही है संक्षिप्त अर्थ
बेखौफ झलकाए अर्थ का अनर्थ

क्यों बनती है कविता?
कैसे रचती है कविता?
किसे जंचती  है कविता?
जो दिखती है, क्या वह होती भी है कविता?

कहती है दिल की बात
या उजाड़ देती है सारी रात
कभी माँ के आँचल-सी कोमल
तो कभी बबूल के कांटे वाली हलचल
गृहस्थ को दे दे संन्यास
अमावस्या बना दे उजली ख़ास

पर अर्थ तो इतिहास भी नहीं बता सकता
कि क्या कहना चाहती है कविता।

कहे कविता, कहे ज्ञानी
रसमय कविता का रस
पिए ज्ञानी, पिलाये अज्ञानी
कविता है पढ़े-लिखे अक्षरों का मेल
जिससे बनती काल्पनिक अस्तित्व की रेल
इस कला में कोई प्रेरणा
करती है सफर, अपने कदमों पर
चेतन-अवचेतन
शहरों की गलियों से
दिमागों की नलियों से
चुपके से समझती है
कविता ही यह भेद सारा

कि कविता है प्रिय के प्रति प्रेम सारा
लबालब जो, पिया गया क्रोध मारा

असमंजस भावों में सामंजस्य बैठाना
मित्र राष्ट्रों में मैत्री करवाना
नहाती है यह फौजी लहू से
भावार्थ बताती नवजात के मुंह से

इशारों में बनती है कविता
सदियों तक चलती है कविता

कहती है इंसानों से
' डरो मत भाषा से
समझो मेरे उर को, संसार को
यही तो है मेरा अस्तित्व
बनी हूँ मैं इंसानों द्वारा, इंसानों के लिए
इंसानियत से बढ़कर है मेरा व्यक्तित्व '

शीतलता जो मैंने जानी
अभिव्यक्त करी तो सबने मानी
निचोड़ो, मत मरोड़ो क्योंकि
साँसों में दीवानापन है
स्वप्नलोक के समंदर में
मीन की तरह है तैर रही
रेगिस्तानी पौधों की जड़ों से
बहुत गहरी है फ़ैल रही।

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