चली पवन मतवाली
लेकर आई है वो
घनन-घनन मस्ताते बादल
सनन-सनन ये हवा
हैं झूमे पेड़ अभी ये सभी
कि चितवन महका
तनमन चहका
है आई किसी की याद
नहीं अंगड़ाई गई बर्बाद
कि छोटी चिड़ियाँ अब भागीं घर को
और लहलहाया है आँचल
इस हरी-भरी धरती का
तो राग सुनाते बादल भी
और यह बिजली की कड़क
कह रहे आज, ओ प्यारे !
कि अब तो होगा मन हल्का
कि बरसेंगे प्यारे बदरा
न तरसेंगी अब ये आँखें
कि होगा मिलन यहाँ पर
बूंदों का हमसे
भरी बारिश में जब फिर नाच
दिखाएगा मोर, तब
और होगी बरसात
झूमेंगे हम भी
प्यासे बदन के संग
खुशबू हो माटी की
और बिखरें सारे रंग।
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