थमी हुई सी थी धड़कन
रुकी हुई सी थी साँसे
हांथों की लकीरों जितनी
सोची थी अनकही बातें …
शब्द नहीं मिलते इतने
प्रश्न उपजते हैं जितने
बढ़ते जाते हैं ये
कैसे जगह बनाती हैं बातें …
मोर पंख में जितने बाल
हलचल उस से ज्यादा है
कैसे कहूं , सुनेगा कौन
सभी का दिल बस आधा है …
मिले नहीं हैं विकल्प अभी
घना है जंगल यादों का
चोट भी करती हैं अब तो
हंसने वाली ये बातें …
कुछ सोचूँ फिर भूलूं, तो भी
कोशिश में कमजोरी है
ताकत पूरी , पर जाने को ,
मज़बूर नहीं हैं ये बातें …
कितना समय लगती हैं ये
निष्कर्ष बहुत कम मिलता है
भर आया `गर ये मन तब भी
रुला नहीं पाईं बातें …
कितना सारा जल है बहता
बह नहीं पाते आंसू
मन की दुविधा का हल भी
खड़े कर गया प्रश्न धांसू …
बजी बांसुरी तान छिड़ गई
व्यथा तो पथ से हिली भी नहीं
भटकना नहीं है लक्ष्य से चाहे
राधे -कान्हा करें जितनी बातें …
अधूरा सा है समां ये दिखता
सांसों में कुछ भारीपन है
बेगाने हुए हैं दिन अब
तन्हा लगती कुछ बातें …
सच में कितने निष्ठुर हैं
जवाब कुछ सवालों के
उँगलियों पर गिनते नहीं बनती
जितने मुँह उतनी बातें …
लगता है कि पत्र आ गये
जिन्हे भुलाना चाहा , खुद आ गए
क्या कहूँ , डर भी लगता है
कथनों में जब भाव आ गए …
मन मेरा डोले जितना भी
कहूँ मैं उस से यही सदा
तू कर अपना काम क्योंकि
यहीं रहेंगी सब बातें …
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