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जुदा-सा दोस्त

Saturday, 4 October 2014


मैं हूँ दोस्त, जुदा-सा
कभी-कभी खफा-सा


पढ़ी मैंने तुम्हारी चिट्ठी
अंदर निकला कबूतर का
सिर्फ एक सफ़ेद पंख

नहीं समझा की यह सफेदी
भिन्नता को साथ रहने का
हम दे रही है
या फासलों के किनारों
के न मिलने का
दे रही है अंदेशा।

मैंने देखा कौवे का पंख
निकला दूसरी से जो





रोया-गाया, ठोका-पीटा
समझ गया मैँ
निराला अर्थ .

कहती हो की बताना चाहती हो
दुनिया को
की भिन्न
प्राणी रह सकते हैं
एक-दुसरे का आदर कर
साथ-साथ

तुम श्वेत, मैं अश्वेत
तुम्हारे नित-नए बनाये जग
मेरा खेल
मेरे रोमांचक गीत
तुम्हारी समझ से परे

पर सचमुच इसमें
बहुत मज़ा है
नयी चीज़ें सीखने  का
लग ही नशा है
फायदा है, उमंग है
पैर पसारता मेरा संसार है

होगा विचारों का विस्तार
बढ़ेगा अपना व्यापार
दो दिशाओं की धाराएं
बनाएंगी प्यार संगम

कहेंगी राधा भी कृष्णा से
देखो मधुर यह संयम।

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