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शर्मीली

Saturday, 11 October 2014



वह क्यों यूँ शर्मा जाती है
क्यों इठलाती, इतराती है
पल भर में साया-सा दिखता
 छुपती है और मुस्काती है।

वह क्यों पास नहीं आती है
लाज से, देखो - बलखाती है
सुंदर युवती का मन है कि
नटखट नयन मिला जाती है।

पलकों के नीचे क्यों रंग है
गाल शर्म से लाल हो रहे
आहट सुनकर भागी जाती
केशों को लहरा जाती है।

उलझे-सुलझे बादल-से क्यों,
बाल हैं उसके घने-घने
पतली-पतली उँगलियों से
जल छिड़काकर उड़ जाती है।

धीरे से क्यों मुस्काती है
पलकें नीची किए शरम
गर्दन अपनी हिलाएगी फिर
चाल चलेगी बड़ी नरम।

चुपके से फिर भागेगी वो
दूर कहीं क्यों छिपती है
समझ नहीं पाई मैं अब तक
भाई से क्यों वो डरती है !!!

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