आज है फैसले की घड़ी
चुहिया पूँछ दबाये है खड़ी
धक – धक दिल तो करता है
कहने से कुछ डरता है …
युद्ध रहा कुछ बिलों को लेकर
भूरी, सफ़ेद चुहियों के भीतर
हौसला बढ़ने आये तीतर
भले लोग बैठे हैं घर पर …
समझदार की कौन है सुनता ?
असरदार का झंडा उड़ता
कोर्ट-कचेहरी के चक्कर में
पूँछ हिलता चूहा मरता …
चार बिलों पर आठ का कब्ज़ा
मिया बाबू बना गए नक्शा
चार चुहियों ने दिया था हफ्ता
भूरी चुहियों का घर है बस्ता …
हमला करा श्वेत चुहियों ने
दो चूहों और छ: चुहियों ने
छीनी सर से छत वो प्यारी
फेंकी सारी चीज़ें न्यारी …
भूरी चुहियों ने दिमाग चलाया
एक भूरा वकील उठाया
काला कोट वो पहन के आया
आँखों पर चश्मा भी चढ़ाया …
टक-टक देखा सबकी ओर
कहा कटी नहीं अपनी डोर
हिम्मत करो, ओ ! जागो यारों
न्याय चाहिए ? भागो सारों …
तबसे लटका भाग्य हमारा
कानून की देवी के हाथ में सारा
आँख पे पट्टा, हाथ में तराजू
नसीब नहीं खाने को काजू …
न्यायालय में केस है अटका
जैसे पूँछ से चूहा लटका
दिखे कहीं ‘गर आठ ये सारे
कर देंगे हम वारे – न्यारे …
फैसला तो आता ही होगा
फिर सबको भिड़ना भी होगा
चलो चलें अब हम भी अंदर
देख लें चल के जादू – मंतर …
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