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फैसला

Friday, 3 October 2014



आज  है  फैसले  की  घड़ी
चुहिया  पूँछ  दबाये  है  खड़ी
धकधक  दिल  तो  करता  है
कहने  से  कुछ  डरता  है

युद्ध  रहा  कुछ  बिलों  को  लेकर
भूरी, सफ़ेद  चुहियों  के  भीतर
हौसला  बढ़ने  आये  तीतर
भले  लोग  बैठे  हैं  घर  पर

समझदार  की  कौन  है  सुनता ?
असरदार  का  झंडा  उड़ता
कोर्ट-कचेहरी  के  चक्कर  में
पूँछ हिलता  चूहा  मरता

चार  बिलों  पर  आठ  का  कब्ज़ा 
मिया  बाबू  बना  गए  नक्शा
चार  चुहियों  ने  दिया  था  हफ्ता
भूरी  चुहियों  का  घर  है  बस्ता

हमला  करा  श्वेत  चुहियों  ने
दो चूहों  और  : चुहियों ने
छीनी सर  से  छत   वो  प्यारी
फेंकी  सारी  चीज़ें  न्यारी

भूरी  चुहियों  ने  दिमाग  चलाया
एक  भूरा  वकील  उठाया
काला  कोट  वो  पहन  के  आया
आँखों   पर  चश्मा  भी  चढ़ाया

टक-टक देखा  सबकी  ओर
कहा  कटी  नहीं  अपनी  डोर
हिम्मत  करो, जागो  यारों
न्याय  चाहिए ? भागो  सारों

तबसे  लटका  भाग्य  हमारा
कानून  की  देवी  के  हाथ  में  सारा
आँख  पे  पट्टाहाथ  में  तराजू
नसीब  नहीं  खाने  को  काजू

न्यायालय  में  केस  है  अटका
जैसे  पूँछ से  चूहा  लटका
दिखे  कहीं  ‘गर  आठ  ये  सारे
कर  देंगे  हम  वारेन्यारे

फैसला  तो  आता  ही  होगा
फिर  सबको  भिड़ना  भी  होगा
चलो  चलें  अब  हम  भी  अंदर
देख  लें  चल  के  जादूमंतर

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