कभी ख़त्म न होगी आँधी
उठी आज जो महलों में
छोटी-सी चिंगारी है पर
आग लगी है पत्तों में …
उठी आज जो महलों में
छोटी-सी चिंगारी है पर
आग लगी है पत्तों में …
अब तड़पो तड़पाने वालों
छुपो, कहाँ अब जगह बची !
नहीं मिलेगी तुम्हें शांति
कारावास के मटकों में …
छुपो, कहाँ अब जगह बची !
नहीं मिलेगी तुम्हें शांति
कारावास के मटकों में …
सहन नहीं कर सकते हो तुम
ज्वलनशीलता का अध्याय
खो गई तेरी उर-संपत्ति
खोजो भूले-भटकों में …
अब कानून की गलियों में …
कभी नहीं अब मिल सकता है
यश, वैभव, काला-धन सारा
दिखे अगर वह कभी कहीं
होगा नालों की नालियों में …
भाग्य तुम्हारा बदल गया है
चरणो में है स्वामी के
नाता जिसका हो बुराई से
उसकी जान है खतरों में …
कभी नहीं अब मिल सकता है
यश, वैभव, काला-धन सारा
दिखे अगर वह कभी कहीं
होगा नालों की नालियों में …
भाग्य तुम्हारा बदल गया है
चरणो में है स्वामी के
नाता जिसका हो बुराई से
उसकी जान है खतरों में …
कभी डिगा भी नहीं सकती है
आतंकियों की वो तलवार
रीढ़ सीधी रखने वालों के
जमे हौसले ढालों में …
शक्ति – कौशल रगों में है
खूंखार – शांति है रची – बसी
त्याग दिया है ढाँचे को पर
बचा है सम्बल लोगों में …
उर इतना मज़बूत हमारा
चट्टान फोड़ नदियाँ निकाल दें
नन्हें घरोंदों की कलियाँ
नहीं लेतीं सहारा पत्तों में …
No comments:
Post a Comment
Nice to meet you...