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तेरी नियति

Saturday, 4 October 2014



नीलाम हुए, बदनाम हुए
बेघर, कितने साल हुए !
आंसू रुके छप्पर जमे
सुगन्धित पुष्प जवान हुए

नव-जीवन की कल्पना को छोड़
कहता यही हर बाप रहा
क्रांति की सरिता को मोड़
समझाता यही भगवान रहा

आलू की आँख; श्री शंकर का नेत्र-
तू देख पहला, देखे दूजा तुझे
कोड़ों की मार का कर पलट वार
आँसूं हैं तेरी नियति का क्षेत्र

कर गर्जना, देख बस खेत
खेत - बदनाम के ईमान की भेंट
प्यासी माँ धरा की संतानें अतृप्त
चित्त लेट और भर अपना पेट

जवान नसों में रक्त उतरा
तैरा, सोचा, अटका-भटका
फिर, लक्ष्य बना - एक कदम उठा -
और उठते से सीढ़ी पर पड़ा

सीढ़ी चढ़ी - आसमान में -
अरमानो का जगत दिखा
सच्चाई मिली तो बर्बादी जुड़ी
ठोकर मार तू, सब्र दिखा

अधिकारोँ होली मचा दे
राष्ट्र को एक बना दे
बेचारों को निवास देकर
बुराई का दिवालिया निकाल दे

आसान नहीं यह, आम नहीं है
नाम नहीं है, काम नहीं है
आलौकिक ताम-झाम के धनि
के भटकाव में मेरा ध्यान नहीं है

माता-पिता की कर पूजा
मत पकड़ कोई दूसरा चूज़ा
स्वाभिमान तेरा छीना जिसने
धारा में उसको बहादे

चला है तू आगाज़ करने
पथ के गड्ढों को भी भरने
अति-सूक्ष्म विस्तृत माया से
सन्नाटे को साक्षर करा दे

नभ के मंच में ज्योति जला दे
उजियारा दे जो शांत संसार को
सरकार को एक पल में सजा दे,
सरहदों को तू दोस्त बना दे।

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