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इश्क़ की वजह मिली...

Monday, 6 October 2014



नया समां है, इश्क़ नया है
आहिस्ते चलने की वजह मिली
कैसे सुनाऊँ मैं ये दास्ताँ
खामोशियों में पनाह मिली

जिस रास्ते पर तू मिला
साथ में फिर तू चला
उस राह पर बार-बार
चलने की वजह मिली


हर जीत जो मिली है उसमें
पल-पल तेरा प्यार समाया
इसी इश्क़ के कारण ही तो
दुआओं को मेरी, सफलता मिली

ठहरा तो हर एक पल था
जब तूने यूँ देखा था
ओट में छिपकर चुपके से
देखने की वजह मिली




महसूस करने लगी तुझे
हर लम्हे, हर ख्वाहिश में
तेरे जान लुटाने से
खूबसूरत लगने की वजह मिली

सोचती हूँ कई बार
आँखों से कहूँ, या ज़ुबाँ पर रखूँ
नज़रें नहीं उठ पाती हैं
मुँह की कलम, खाली मिली

हैं सभी परेशान मुझसे
मेरी आदतें हैं बदलीं
लोक-लाज और मर्यादा
की बातें दुश्मन ज़माने से मिलीं

फिर भी मुझको दुःख नहीं
तुझे याद करके है सुकून
तेरी बाहों में ही मुझको
सबसे प्यारी जगह मिली


क्या पता, तुझे चाहने की
सज़ा मिले या प्रशंसा
इन सब को दूसरी दुनिया में
भेज कर मुझे शान्ति मिली

तुझे चाहने का जी करता है
इधर-उधर जाऊँ तो भी
दिल बस यही सोचता है
कि रहने के लिए अब जगह मिली

तेरे साथ ही चलना है मुझको
तेरे साथ ही झड़ना है
तेरे पास में आने से
साँसों को जैसे राहत मिली।


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