यूँ ही बैठा करते हैं अदालतों के शोर में
कि पैर बस भागने को उठ खड़े होते हैं
जहाँ बैठ मैं हर हकीकत से रूबरू हुआ
वहीँ उम्रकैद के फैसले पड़े होते हैं
हर नई उलझन कुछ ऐसी साजिश चलती है
उस माहौल में सारे सवाल अड़े होते हैं
क्या पता, रूह कहाँ पड़ी मिलेगी
लालची झूठ के पैगाम ज़्यादा बड़े होते हैं
दिन ढलता है, बात ख़त्म नहीं होती
बाहर देखो, चाय - पानी के इंतज़ाम खड़े होते हैं
वक़्त के साथ, मानवता भी मुरझा गई
इस पेशे में सारे मुकाम गिरे होते हैं
कहाँ मिलेगा न्याय, सफ़र बहुत बड़ा है
सबूतों की गड्डी लिए, बाहर अफसर खड़ा है
तेरी आँखों में धूल झोंकने आया हूँ
बोल तेरे इमान को कितने में नीलम करूँ ?
हर सच्चाई पर परतें पड़ गईं
परतों के भीतर बच्चे पल रहे होते हैं।
.............................................................I Rely on my Instincts and Intuition to Follow my Own Path.
जर्जर वकील
Wednesday, 14 January 2015
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Nice to meet you...