आँखें थीं नम और ज़ुबाँ थी खामोश
हर अश्रु के साथ, हर आह बह गई
ख्याल रखा उन्होंने इस दिल का सही तरीके से
कद्र करने में यूँ डूबे, कि बाहर आना भूल गए।
देखा फिर हमने उन्हें, इन ठहरे झरोखों से
महसूस किया यूँ कि रच गए लहू में
सोचा था बहुत कुछ, आँखें न कह पाईं पर
ठहरा तो हर इक पल था, ओट में छिपकर चुपके से।
दीदार किया उन्होंने जो, लज्जा ने घेर लिया
इज़हार और इकरार में दूरी न रह गई
इसलिए हुईं आँखें नम और खामोश ज़ुबाँ
वो हमारी ज़मीन हैं, और हम आसमान।
.............................................................I Rely on my Instincts and Intuition to Follow my Own Path.
क्यूँ हुईं आँखें नम और खामोश ज़ुबाँ ?
Wednesday, 14 January 2015
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