तन्हाई है कुछ यूँ इस तरह
दामन से जुड़ी !
सांसें दे कर भी, अनजानों की तरह
जान ले रही !
बदलता है मौसम हर रिश्ते का
कुछ इस तरह,
कि पता नहीं चलता कब पायल बजी
कब चूड़ी टूट गई !
टुकड़ों में बंट गया हर वो सपना,
जिसे देखा मैंने, समझकर सबको अपना।
तन्हा-तन्हा वो हर पल बन गया,
बेखबर-सा नशा मेरे सफ़र में मिल गया।
कबसे बैठा था ये दिल, चाहत के इंतज़ार में
मिले हमें सभी से काँटे उधार में !
जिसकी तौहीन भी न कर सके कभी हम
उसने दे डाले जंज़ीर के निशान हाथ में ...
ठहरा नहीं कुछ भी, पर घाव के निशान हैं ...
मिट जाएँगे ये भी, ये सब इम्तेहान है ...
मर्ज़ी जो चलती है रब की यहां पर,
यह जानने वाला मिटता नहीं, देता बलिदान है।
व्यथा तो हमसे दूर जाती नहीं, जैसे अड़ी हो यहीं-कहीं
चुभन भी कुछ ज़्यादा करीब रहती है आजकल
जुदाई को हो रहा है लगाव ठहरने से
इनकी करीबी इतनी क्यों खेल रही है हमसे ?
बहकते नहीं हैं कदम, फिर भी, न जाने क्यों
दर्द का आलम रहता है दिल पर !
सब्र का तूफ़ान चल चुका है सीने में
गुज़र जाएगा ये समां, देखते हुए खिड़की पर ...
इन रिश्तों की डोर इतनी कमज़ोर भी नहीं,
कि छूटे और टूटने को भागे -
कुछ तो खता हुई होगी हमसे-तुमसे,
कि हर बात अब ज़हरीलेपन में सबसे आगे !
क्यों है खामोश इन सितारों की चादर में समां ?
क्यों है मदहोश, कुछ गुमशुदा-सा ये कारवां ?
ऐसे किसी बदलाव की जड़ तो दिखती भी नहीं,
धुँए में लिपट गया है, जाड़े का दिल जवां ...
कभी तो हो नया बसेरा इस जहाँ में,
पहचान हो एक-दूसरे से सबकी यहाँ,
निराशा कभी तो छोड़े उजाले का साथ,
और चल पड़े फिर एक हरी-भरी दास्तां।
जगत को मुक्ति मिल जाए पापियों से,
जान गँवाने की वजह न मिले हमें,
हो जाए सवेरा रिश्तों का भी एक पल में,
बलाएँ टलने की चिंता न करनी पड़े हमें।
है जो ये खूबसूरत-सी कहानी का ख्वाब -
काश ! सच हो जाये इस ही दुनिया में।
बंधन को बांधना मुश्किल न रहे,
बदलाव हानि न पहुचाएं जनता में।
खुशगवार रहे हर आंधी के बाद की बारिश,
रहे सदा स्वच्छ हर नज़र,
देखें खुद को आईने में पहले,
मन में विश्वास जगाएँ हर पहर।
तन्हा न हो जाएँ सभी रिश्ते यहाँ,
हो मर्यादा हर इंसान की ज़ुबाँ में,
बेखबर रहे न लोग मित्रों से भी,
कुछ ऐसे बने नया स्वर्ग हमारी शान में ...