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वीर

Monday, 28 April 2014

बचपन  की दुनिया  से
युवाओं  की सृष्टि  तक  
सफ़र  के  बाद
 गुलाम  रौशनी  के  अंधकार  को  चीर
जब  आये  थे  वीर  
तब  वहाँ से  आते  ही
यहाँ  से नए सफ़र पर  जाते  ही
कहा  था  उन्होंने
कि  शायद  वे  नहीं  आएंगे  लौटकर



चले  थे  आज़माने  अपनी  ताकत  को  वे  बेघर
जो  उठाए  तलवार , वही  है  निडर
कहते  थे  नहीं  बहा  करते  दया  के आंसू  सियासत  से
धड़कनें  हो  जाती  हैं  शहीदों  को  न्योछावर



आज़ादी  के नाविक  बन  कर  जा  रहे  हैं ,
हर  अंग्रेज़  दुश्मन  को  उखाड़ते  जा  रहे  हैं ,
कभी    आए  आँच  भारत  माता  पर ,
आशा  की   वे  ज्योति  जलाते  जा  रहे  हैं



गतिमान  होकर  बही  थीं  जो  खून  की नदियाँ ,
अमिट  हस्ताक्षर  करने  में  सहायक  हैं ,
निश्छल  हृदय  में  उठी  जो  चिंगारी
शैतान  के  पैर  जमाए  रहने  में  बाधक  है


अग्रसर  आज़ादी  के  जब  गुलाब  खिले ,
तड़पती  ख़ुशी  से  वे  खिलखिलाए ,
कुछ  वीरगति  को  प्राप्त  हुए ,
कुछ  को  हम  किताबों  में  ले  आए


भारत  को  दिया  सब  कुछ  अपना ,
किया  सबने  उन्हें  सलाम ,
देश  ऊँचाइयाँ  छूता  जाए ,
तारों  ने  कहा , है  हमारा  काम

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